सूत्र :अहिंसासत्यास्तेय ब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः ॥॥2/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - अहिंसासत्यास्तेयब्रह्यचय्र्यापरिग्रहा । यमा: ।
पदा० - (अहिंसासत्या०) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्यचर्य्य, अपरिग्रह, यह पांच (यमाः) यम हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - मन, वाणी और शरीर से अनिष्टचिन्तन, कठोरभाषण तथा पीड़ाद्वारा प्राणीमात्र को दुःख देने का नाम “हिंसा” सर्व प्रकार से सर्वकाल में किसी को भी दुःख न देने का नाम “अहिंसा” यथार्थभाषण अर्थात् जैसा देखा वा अनुमान किया अथवा सुना उसको वैसा ही कथन करने का नाम “सत्य” छल, कपट, ताड़नादि किसी प्रकार से भी अन्य पुरूष के धन को ग्रहण न करने का नाम “अस्तेय” सर्व इन्द्रियों के निरोधूर्पक उपस्थ-इन्द्रिय के निरोध का नाम “ब्रह्मचर्य्य” और दोपदृष्टि से विषयें के परित्याग का नाम “अपरिग्रह” है।।
इन पांचों के अनुष्ठान द्वारा स्वयमेव इन्द्रिय अपने २ विषयोंसे उपराम हो जाते हैं इस कारण इसका नाम “यम” है।।
इनमें अहिंसा मुख्य और अन्य सब उसकी निर्मलता तथा पुष्टि के लिये होने से गौण हैं, इसी बात को सांख्यभाष्य में पच्शशिखचार्य्य ने इस प्रकार स्पष्ट किया है कि - “सं खल्वयं ब्राह्मणो तथा २ व्रतानि बहूनि समदित्सते, तथा २ प्रमादकृतेभयो हिंसानिदानेभ्यो निवत्र्तपानस्तामेवावदकरूपामहिंसां करोति=यह वेदवेत्ता योगी जैसे २ यम-नियमों का अनुष्ठान करता है वैसे २ ही प्रमाद द्वारा होनेवाले हिंसा के कारण मिथ्या भाषणदि से निवृत्त हुआ अहिसा को निर्मल करता है।।
यह पांचों यम योग के विरोधी हिंसा, मिथ्याभाषण, स्तेय, तथा स्त्री सड्ड आदि की निवृत्ति करके योग को सिद्ध करते हैं इसिलये योग के अड्डं हैं।।
सं० - अब जिस प्रकार के यम योगी को अनुष्ठेय हैं उनका कथन करते हैं:-