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योग दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः ॥॥1/9
सूत्र संख्या :9

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - शब्दज्ञानानुपाती। वस्तुशून्यः । विकल्पः । पदा० - (शब्दज्ञानानुपाती) शब्दज्ञान के सहात्म्य से होने वाले (वस्तुशून्यः) विषयरहित ज्ञान को (विकल्पः) विकल्प कहते हैं।।

व्याख्या :
भाष्य - जो ज्ञान वस्तु नाम विषय से रहित हो अर्थात् जिस ज्ञान का विषय कुछ न हो और शब्दज्ञान से उत्पन्न होजाय उसको “विकल्प” कहते हैं, यहां शब्दज्ञान से तात्पर्य शब्द को विषय करने वाले सामान्य ज्ञान से है, वह अक्षरों के देखने अथवा शब्द के श्रवण से हो, केवल श्रावणज्ञान ही अपेक्षित नहीं।। भाव यह है कि सत्, असत् विषय के न होने पर भी शब्दज्ञान की सामथ्र्य मात्र से उस २ विषय के आकार को धारण करने वाली “वन्ध्या का पुत्र, आकाश के फूल” इत्यादि प्रकार की चित्तवृत्ति को विकल्प कहते हैं, यह विकल्पवृत्ति निर्विषय होने से प्रमाण नहीं और बुद्धिमानों की दृष्टि में विषय का वाघ होन पर भी व्यवहार का वाघ नहीं होता और संशय तथा विपर्यय वृत्ति में व्यवहार का भी वाघ होजाता है, इसलिये संशय तथा विपर्यय भी नहीं किन्तु प्रमाण तथा संशय विपर्यवृत्ति से भिन्न वृत्ति है।। वार्तिककार के अनुसारी विवरणकार ने इस सूत्र का यह अर्थ किया है कि जो ज्ञान वस्तु=विषय से शून्य हो और शब्दज्ञानानुपाती=प्रमाण ज्ञान की भांति शब्द तथा ज्ञानात्मक व्यवहार का जनक हो उसको “विकल्प” कहते हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि जैसे प्रत्यक्ष आदि प्रमाण वृत्तियें अपने २ विषय में शब्द तथा ज्ञानात्मकर व्यवहार की जनक है वैसे ही व्यवहार का जनक हो और उनकी भांति कोई विषय न रखता हो, उसका नाम विकल्प है।। सं० - अब निद्रावृत्ति का लक्षण करते हैं:-