सूत्र :वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाक्लिष्टाः ॥॥1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - वृत्तयः। पशतय्यः। क्किष्टाक्किष्टाः।
पदा०- (वृत्तयः) निरोध करने योग्य, चित्तवृत्तियें (पशचय्यः) पांच प्रकार की हैं और फिर वह (क्किष्टाक्किष्टाः) क्किष्ट, अक्किष्ट भेद से दो प्रकार हैं।।
व्याख्या :
भाष्य-धर्माधर्म की वासना को उत्पन्न करनेवाली राजस, तामस वृत्तियों को “क्किष्ट” कहते है अर्थात् जिन वृत्तियों के उदय होने से पुरूष रागद्वेषादि में प्रवत्त हुआ शुभाशुभ कर्मों के करने से पुनः २ जन्ममरणरूप कष्ट को प्राप्त होता है उनको क्किष्ट कहते हैं और जो वृत्तियें प्रकृति पुरूष के विवेक अर्थात् भेद को विषय करती हुई गुणाधिकार + को निवृत्त करती हैं ऐसी सात्त्विक वृत्तियों का नाम अक्किष्ट है।।
तात्पर्य यह है कि जिन वृत्तियों के उदय होने से पुरूष के भावी जन्म का आरम्भ होता है उनको क्किष्ट और जिनके उद्य होने से मनुष्य के भावी जम्न का आरम्भ नहीं होता अर्थात् जिनसे पुरूष मुक्तवस्था को प्राप्त हो जाता है उनको अक्किष्ट कहते है इस प्रकार क्किष्टाक्किष्टं भेद्वाली निरोध के योग्य चित्त की वृत्तियें पांच प्रकार की हैं।।
यहां यह भी जानना आवश्यक हैं कि यद्यपिं लज्जा, तृष्णा आदि भेद से चित्तवृत्त्यिें असंख्यात है, जिनकी गणना सहस्त्रों वर्ष पर्य्यन्त भी होनी असम्भव है तथापि वह सब निरोध के योग्य नहीं, क्योंकि उनका पांच प्रकार की वृत्तियों में अन्तर्भाव होने के कारण्या इनके निरोध से स्वयं निरोध हो जाता हैं, इसीलिये निरोध करने योग्य केवल पांच ही वृत्तियें है।।
सं०-अब पांच वृत्तियां को कहते हैं:-