सूत्र :स तु दीर्घकाल नैरन्तर्य सत्कारादरासेवितो दृढभूमिः ॥॥1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०-सः। तु । दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितः । दृढ़भूमि:।
पदा० - (दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवित:) दीर्घकाल, निरन्तर तथा ब्रहृाचर्य्य आदि से अनुष्ठान किया हुआ (सः, तु) अभ्यास (दृढ़भूमि) दृढ़ होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - सूत्र में “दीर्घकाल” से तात्पर्य मरणपर्य्यन्त का है और “नैरन्तर्य” पद का अर्थ सुपुप्ति पर्य्यन्त भी त्रुटि का न होना ओर “सत्कार” पद का अर्थ ब्रहाचर्य्य, श्रद्धा आदि हैं।।
तात्पर्य्य यह है कि जब पुरूष दीर्घकालपर्य्यन्त निरन्तर ब्रहाचर्य्य आदि का अनुष्ठान करता है तब अभ्यास दृढ़ हो जाता है फिर व्युत्थान के संस्कारों से चलायमान नहीं होता अर्थात् चित्त स्थिर होजाता है, अतएव अभ्यास की छढ़ता के लिये उसका निरन्तर सेवन करना उचित है।।
सं०- पर और अपर भेद से वैराग्य दो प्रकार का है इनमें से प्रथम अपर वैराग्य का लक्षण करते हैं:-