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योग दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूप प्रतिष्ठम् ॥॥1/8
सूत्र संख्या :8

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - विपर्ययः। मिथ्याज्ञानं । अतद्रूपप्रतिष्ठम्। पदा०- (अतद्रूपप्रतिष्ठम्) जिसकी वस्तु के यथार्थरूप में स्थिति न हो ऐसे (मिथ्याज्ञानं) मिथ्याज्ञान को (विपर्ययः) विपर्यय कहते हैं।।

व्याख्या :
भाष्य - “अतद्रुपप्रतिष्ठम्” इस पद में असमर्थसमास है, इसलिये यह “तद्रूपाप्रतिष्ठम्” ऐसा समझना चाहिये, जो ज्ञान वस्तु के यथार्थरूप में स्थिर नहीं अर्थात् वस्तु के सत्यरूप को विषय न करने से कालन्तर में उससे च्युत होजाता है जैसाकि रज्जु में सर्पज्ञान, शुक्ति=सीपी में चांदी का ज्ञान तथा एक चन्द्र में द्विचन्द्र ज्ञान है, ऐसे मिथ्या ज्ञान का नाम “विपर्यय” है।। तात्पर्य यह है कि जो वस्तु जिस प्रकार की हो उसको किसी नेत्रदोष, चित्तदोष वा अन्धकार आदि दोष के कारण उसी प्रकार से विषय न करके किसी अन्य प्रकार से विषय करनेवाली चित्तवृत्ति को “विपर्यय” कहते हैं।। यहां यह भी जानना आवश्यक है कि सूत्र में “अतद्रूपाप्रतिष्ठम्” यह पद् संशयवृत्ति के ग्रहणार्थ आया है, क्योंकि वह भी वस्तु के यथार्थ रूप में अप्रतिष्ठित अर्थात् स्थिर न होने के कारण मिथ्या ज्ञाना है, भेद केवल इतना है कि संशय ज्ञान में दो कोटि तथा विपर्यय ज्ञान में एक कोटि का भान होता है और “मिथ्याज्ञानं” यह पद् विकल्पवृत्ति में विपर्ययवृत्ति के लक्षण की अतिव्याप्ति के निराकाणार्थ आया है, क्योंकि विकल्पज्ञान भी वस्तुशुन्य होने से वस्तु के यथार्थरूप में प्रतिष्ठित नहीं होता, परन्तु सर्वसाधारण को उसके वाघ=अयथार्थपन का ज्ञान न होने से वह मिथ्या ज्ञान नहीं।। यहां इतना और भी जानना आवश्यक है कि आहार्य्य और अनाहार्य्य भेद से विपर्यवृत्ति दो प्रकार की है, अपनी इच्छा से उत्पन्न की गई वृत्ति का नाम “आहार्य्य” और स्वतः उत्पन्न होनेवाली वृत्ति का नाम “अनाहार्य्य” है जैसाकि शालिग्राम आदिकों में ईश्वरबुद्धि “आहार्य्य” और शुक्ति आदिकों में रजतादिबुद्धि “अनाहार्य्य” है, यह दोनों प्रकार की विपर्ययवृत्ति अनर्थ का हेतु होने से निरोध करने योग्य हैं, इनमें प्रथम वृत्ति के अनन्त भेद हैं जिनको बुद्धिमान् स्वयं जान सकते हैं और दूसरी वृत्ति के अविद्या आदि पांच भेद हैं जिनका आगे साधनपाद् में विस्तारपूर्वक निरूपण किया जायगा।। सं० - अब विकल्पवृत्ति का लक्षण करते हैं:-