सूत्र :अनुभूतविषयासंप्रमोषः स्मृतिः ॥॥1/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०- अनुभूतविषयासम्प्रमोषः । स्मृतिः।
पदा०- (अनुभूतविषयासम्प्रमोषः) पूर्व अनुभव किये हुए विषय के संस्कार से उसी विषय में होनेवाले ज्ञान का नाम (स्मृतिः) स्मृति है।।
व्याख्या :
भाष्य - “सम्प्रमोषः” पद् का अर्थ स्तेय= चोरी है, वह स्तेय अर्थ में वत्र्तने वाले (सम्-प-पूर्वक) मुप् धातु से सिद्ध होता है, पूर्वकाल मे अनुभव किया हुआ विषय स्मृति का स्वार्थ=अपना विषय होता है और जो विषय पूर्व अनुभव नहीं किया वह परार्थ=दूसरे का अर्थ है, एवं सूत्रार्थ यह हुआ कि पूर्व प्रत्यक्षादि प्रमाणों से जितने अर्थ का अनुभव हुआ है उतने ही अर्थ को विषय करने वाली संस्कारजन्य वित्तवृत्ति का नाम “स्मृति” है।।
सं०- अब निरोध करने योग्य पांच प्रकार की चित्त्वृत्तियों का कथन करके उनके निरोध का उपाय वर्णन करते हैं-