सूत्र :अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः ॥॥1/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०- अभ्यासवैराग्याभयां। तन्निरोधः
पदा०- (अभ्यासवैराग्याभयां) अभ्यास और वैराग्य से (तन्निरोधः) उन वृत्तियों का निरोध होता है।।
व्याख्या :
भाष्य- अभयास और वैराग्य का लक्षण आगे निरूपण करेंगे, इन दोनों के अनुष्ठान से चित्त की सर्व वृत्तियों का निरोध होजात है, इनमें वैराग्य चित्तवृत्ति के निरोध का ओर अभ्यास निरोध की स्थिरता का उपया है।।
तात्पर्य्य यह है कि सम्पूर्ण चित्तवृत्तियों के निरोध करने में दोनों का समुच्चय=मिलाप है विकल्प नहीं अर्थात् यह दोनों मिलकर निरोध को सम्पादन कर सकते हैं पृथक् २ नहीं, यहां पर अनुष्ठानकम की अपेक्षा से सूत्र का “वैराग्यभ्यासाभ्यांतन्निरोध:” ऐसा पाठ होना चाहिये, क्योंकि वैराग्य, के अनन्तर ही अभ्यास होसकता है प्रथम नहीं।।
सं०- अब अभ्यास का लक्षण करते हैं:-