सूत्र :प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम् ॥॥2/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - प्रकाशक्रियास्थितिशीलं । भूतेन्द्रियात्मकं । भोगापवर्गार्थ । दृश्यम् ।
पदा० -(भोगापवर्गार्थ) पुरूष को भोग तथा अपवर्ग देनेवाले (भूतेन्द्रियात्मकं) भूत तथा इन्द्रियरूप से परिणाम को प्राप्त (प्रकाशक्रियास्थितिशीलं) प्रकाश, क्रिया तथा स्थिति स्वभाववाले सत्त्वादिगुणों को (दृश्यं) दृश्य कहते हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, यह पांच स्थूल और शब्द, स्पर्श, रूप रस, गन्ध, यह पांच सूक्ष्म, इन दंशों को नाम “भूत” और वाक् पाणि, पाद, गुदा, उपस्थ, श्रोत, त्वक्, चक्षृ, रसना, घ्राण, मन, अंहकार, बुद्धि, इन तेरह का नाम “इन्द्रिय” है, प्रकाशस्वभाव का नाम सत्त्वगुण, किया स्वभाव का नाम रजोगुण और स्थितिस्वभाव का नाम तमोगुण है अर्थात् प्रकाशशक्ति का नाम “सत्त्व” और क्रियाशक्ति का रज “रज” तथा प्रकाशक्रिया के प्रतिबन्धक आवरण शक्ति का नाम “तमोगुण” है, सुख दुःख के साधन विषयों की प्राप्ति का नाम “भोग” और दुःखात्यन्तनिवृत्तिपूर्वक परमानन्द की प्राप्ति का नाम अपवर्ग” है, ईश्वर की आज्ञानुसार पुरूष को भोग तथा अपवर्ग देने के लिये भूत और इन्द्रियरूप से परिणत सत्त्वादिगुणरूप प्रकृति का नाम “दृश्य” है।।
सं० - अब उक्त दृश्य की अवस्थाविशेष का निरूपण करते हैं-