सूत्र :ते ह्लाद परितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात् ॥॥2/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - ते। हादपरितापफला:। पुण्यापुण्यहेतुत्वात्।
पदा०- (पुण्यापुण्यहेतुत्वात्) धर्म तथा अधर्म का कार्य्य होने से (ते) वह तीनों (हादपरितापफला:) सुख दुःख का हेतु हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - जाति, आयु, भोग, यह तीनों धर्माधर्म से उत्पन्न होते हैं, जिनकी धर्म से उत्पत्ति होती है उनका फल सुख और जिनकी अधर्म से उत्पत्ति होती है उनका फल दुःख है अर्थात् धर्मजन्य जाति आदिकों से सुख और अर्धमजन्य से दुःख की प्राप्ति होती है, इसलिये यह विवेकी पुरूषों को अविद्यादि क्केशों की भांति सर्वथा त्याज्य हैं।।
सं० - ननु, जिनसे दुःख की प्राप्ति होती है वही त्याज्य होसकते हैं अन्य नही ? उत्तर:-