DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :हेयं दुःखमनागतम् ॥॥2/16
सूत्र संख्या :16

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - हेयं । दुःखं । अनागतम्। पदा० - (अनायतम्) भविष्यत् (दुःखं) दुःख (हेयं) त्याज्य है।।

व्याख्या :
भाष्य - भूतदुःख भोग से निवृत्त हो चुका है और वत्र्तमान दुःख भोगारूढ़ है वह स्वयं भोग से निवृत्त हो जायगा, इसलिये विचारशील पुरूषों को भविष्यत् दुःख ही हेय है।। ताथ्पर्य्य यह है कि जो दुःख आनेवाला है उसकी निवृत्ति के लिये यदि पुरूष प्रयत्न करे तो उसके उपायों को भले प्रकार सम्पादन कर सकता है परन्तु वत्र्तमानदुःख की निवृत्ति के उपायों का सम्पादन करना कठिन है, इसलिये वत्र्तमानदुःख को सहकर भावी दुःख की निवृत्ति का उपाय सम्पादन करना मनुष्यमात्र का कत्र्तव्य है क्योंकि अनागत दुःख ही त्यागने योग्य हैं।। सं० - अब हेयहेतु का निरूपण करते हैं:-

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