सूत्र :सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः ॥॥2/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - सति । मूले। पद्विपार: । जात्यायुर्भोगाः।
पदा० - (मूले) मूलकारण के (सति) विद्यमान होने पर ही (तद्विपाक:) धर्माधर्मरूप कर्माशय का फल (जातयार्भोगा:) जन्म, आयु तथा भोग होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - जन्म का नाम “जाति” जीवनकाल का नाम “आयु” और सुख दुःख के हेतु शब्दादि विषयों की प्राप्ति का नाम “भोग” है, यह तीनों धर्माधर्मरूप कर्माशय का फल होने से “कर्मविपाक” कहलाते हैं।।
कर्माशय तब तक ही जाति आदि विपाक का भारम्भक होता है जब तक इसके मूलकारण अविद्यादि क्केशों का नाश नहीं होता, ओर विवेकज्ञान के द्वारा उक्त क्केशो का नाश होजाने से नष्टमूल हुआ कर्माशय अनन्त होने पर भी उक्त फल का आरम्भक नहीं होसकता, क्योंकि मूल के कट जोन से शाखा का फलीभूत होना असम्भव है, अतएव अपने मूलभूत अविद्यादि क्केशों के विद्यमान होने पर ही धर्माधर्मरूप कर्माशय जाति आदि फल के जनक हो सकत हें अन्यथा नहीं।।
तात्पर्य्य यह है कि जैसे तण्डुल तुषों के विद्यमान होने पर ही अंकुर देने में समर्थ होते हैं वैसे ही अविद्यादि क्केशों के विद्यमान होने पर ही कर्माशय उक्त फल के उत्पादन करने में समर्थ होते हैं अन्यथा नहीं, इसलिये क्लेशों के निवृत्त होने पर कदापि कर्माशय फल का आरम्भ नहीं कर सकता।।
सं० - ननु धर्माधर्मरूप कर्माशय का मूलकारण अविद्यादि क्केश त्याज्य हो परन्तु जाति, आयु, भोग, यह तीनों क्यों त्याज्य हैं? उत्तर:-