सूत्र :द्रष्टृदृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः ॥॥2/17
सूत्र संख्या :17
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - द्रष्ट्टदृश्ययो:। संयोग:। हेयहेतु:।
पदा० - (द्रष्ट्टदृश्ययो:) द्रष्टा, दृश्य का (संयोग:) संयोग (हेयहेतु:) दुःखों का कारण है।।
व्याख्या :
भाष्य - बुद्धि के प्रतिसंवेदी अर्थात् बुद्धि के सम्बन्ध से सर्व पदार्थों को अनुभव करने वाले पुरूष का नाम “द्रष्टा” और जिन पदार्थों को बुद्धि ग्रहण करती तथा जो पदार्थ अहंकार के द्वारा बुद्धि से उत्पन्न होते हैं उन सब प्रकृति तथा प्राकृत पदार्थों का नाम “दृश्य” है और भोग तथा अपवर्गरूप पुरूषार्थ के अधीन जो इन दोनों का परस्पर संयोग है उसका नाम “हेयहेतु” है।।
भाव यह है कि पुरूषार्थ प्रयुक्त जो प्रकृति पुरूष का स्वस्वाभिभाव वा दृश्यद्रष्टट्टभाव अथवा भोग्यभोक्तृभावरूप अनादि सम्बन्ध है वह दुःखों का हेतु है।।
सं० - अब दृश्य का स्वरूप कथन करते हैं:-