सूत्र :तदर्थ एव दृश्यस्यात्मा ॥॥2/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - तदर्थ: । एव। दृश्यस्त। आत्मा।
पदा० - (दृश्यस्य) पूर्वोक्त दृश्य का (आत्मा) स्वरूप (तदर्थ:, एव) द्रष्टा के लिये ही है।।
व्याख्या :
भाष्य - भोग और अपवर्ग यह दोनों द्रष्टा के अर्थ कहलाते हैं क्योंकि वह प्रतिक्षण इनकी अर्थना करता है और इसी कारण सांख्य तथा योग की परिभाषा में इनका नाम पुरूषार्थ है, इस पुरूषार्थ की सिद्धि ही पूर्वोक्त दृश्य का प्रयोजन है अर्थात् ईश्वर आज्ञा से जो प्रकृति ने नाना प्रकार की जगत्-रचना की है वह पुरूष के भोग तथा अपवर्ग सिद्धि के लिये ही है किसी अन्य प्रयोजन की सिद्धि के लिये नहीं, अतएव द्रष्टा के अर्थ ही पूर्वोक्त दृश्य हैं।।
सं० - ननु, यदि, दृश्य को दृष्टा की प्रयोजनसिद्धि के लिये ही माना जाय तो उक्त प्रयोजन सिद्ध होजाने पर उसका नाश होजाना चाहिये? उत्तर:-