सूत्र :तस्य हेतुरविद्या ॥॥2/24
सूत्र संख्या :24
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०- तस्य। हेतु:। अविद्या।
पदा०- (तस्य) प्रकृति, पुरूष के संयोग का (हेतु:) कारण (अविद्या) अविवेक है।।
व्याख्या :
भाष्य - अविद्या, विपर्ययज्ञान, भ्रान्तिज्ञान, अज्ञान, अविवेक, यह सब पय्र्याय शब्द हैं, वासनारूप से निरन्तर वत्र्तमान अनादि अविवेक ही प्रकृति पुरूष के उक्त सम्बन्ध का “हेतु” है।।
यहां इतना जानना आवश्यक है कि यद्यपि यह अविद्या बुद्धि का धर्म होने के कारण स्वरूप से अनादि नहीं तथापि वासनारूप से निरन्तर वत्र्तमान होने के कारण बुद्धि की भांति अनादि है, अतएव अविद्या के अनादि होने से भोग तथा अपवर्ग का हेतु प्रकृति पुरूष का संयोग भी अनादि है:-
सं० - अब हान का स्वरूप कथन करते हैं:-