सूत्र :क्लेशमूलः कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीयः ॥॥2/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - क्केशमूल:। कर्माशय:। दृष्टादृष्टजम्नवेदनीयः।
पदा० - (दृष्टादृष्टजन्मवेदनीय:) इस जन्म तथा जन्मान्तर में फल देने वाले (कर्माशय:) शुभाशुभकर्मजन्य धर्माधर्म का (क्केशमूल:) अविद्यादि क्केश मूलकारण हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - वर्तमान जन्म को “दृष्टजन्म” और भावी जन्म को “अदृष्टजन्म” कहते हैं, और सुख दुःख के हेतु शुभाशुभ कर्मजनय धर्माधर्म का नाम “कर्माशय” है, जिस धर्माधर्म का फल भोगा जाय उसका नाम “दृष्टजन्मवेदनीय” और जिसका भावीजन्म में भोगा जाय उसका नाम “अदृष्टजन्मवेदनीय” है, उक्त धर्माधर्म का मूलकारण अविद्यादि पांच क्केश हैं, अतएव वह निवृत्त करने योग्य हैं।।
तात्पर्य्य यह है कि उक्त क्केशों क विद्यमान रहने से सुख दुःख के हेतु धर्माधर्म का प्रवाह निरन्तर बना रहता है और निवृत्त से निवृत्त होजाता है, इसलिये उक्त धर्माधर्म की निवृत्ति ही क्केशनिवृत्त का प्रयोजन है।।
यहां यह भी ध्यान रहे कि अतिप्रयत्र द्वारा मंत्र, तप, समाधि और महानुभावपुरूषों की सेवा से उत्पन्न हुए धर्म का और भीत, रोगी, अनाथ तथा विश्वासघात और महानुभाव तपस्वियों के अपकार से उत्पन्न हुए अधर्म का फल दृष्टजन्मवेदनीय ही होता है, अदृष्टजन्मवेदनीय नहीं।।
सं० - ननु, क्केशों निवृत्ति होनपर भी तन्मूलकर कर्माशय अपने फल देने से निवृत्त नहीं हो सकते क्योंकि वह अनेक जन्मों में सश्वित होने के कारण अनन्त हैं? उत्तर:-