सूत्र :अनित्याशुचिदुःखानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या ॥॥2/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०- अनित्याशुचिदुःखानात्मसु । नित्यशुचिसुखात्मख्याति: । अविद्या।
पदा० - (अनित्याशुचि०) अनित्य, अशुचि, दुःख तथा अनात्म पदार्थों में (नित्यशुचिसुखात्मख्याति:) नित्य, शुचि, सुख तथा आत्मबुद्धि का नाम (अविद्या) अविद्या है।।
व्याख्या :
भाष्य - ख्याति, बुद्धि, ज्ञान, यह तीनों एकार्थवाची शब्द हैं, अनित्य=विनाशी पदार्थों में नित्यबुद्धि, अशुचि=अपवित्र शरीरादि में पवित्र बुद्धि, दुःख=दुःखरूप में विषयभोग में सुखवृद्धि, तथा अनात्म-बुद्धि से लेकर स्त्री, पुत्र मित्रादि अनात्म पदार्थों में आत्मबुद्धि, का नाम “अविद्या” है।।
तात्पर्य्य यह है कि विपरीत ज्ञानका नाम अविद्या है।।
यहां इतना विशेष जानना आवश्यक है कि यद्यपि शुक्ति में रजत तथा रज्जु में सर्प की प्रतीति आदि अनेक प्रकार की अविद्या है तथापि अस्मिता आदि क्लेशों और शुभाशुभ कर्मों के जाति, आयु, भोगरूप फल और उनकी वासनाओं का मूलकारण उक्त चार प्रकार की ही अविद्या है इसलिये यहां पर इन्हा प्रकारों का निरूपण किया गया है।।
सं० - अब अविद्या के कार्य्य अस्मिता का लक्षण करते हैं:-