DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
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Darshan

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सूत्र :परमाणु परममहत्त्वान्तोऽस्य वशीकारः ॥॥1/40
सूत्र संख्या :40

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - परमाणुपरममहत्त्वान्त:। अस्य । वशीकारः । पदा० - (अस्य) इस योगी के चित्त का (परमाणुपरममहत्त्वान्त:) परमाणु से लेकर परममहत् वस्तु पर्य्यन्त (वशीकार:) वशीकार होता है।।

व्याख्या :
भाष्य - पूर्वोक्त चित्तस्थिति के उपायों वाले योगी का चित्त सूक्ष्म वस्तु में संयम करता हुआ परमाणु पथ्र्यन्त निर्विघ्र स्थिति को प्राप्त होता है और स्थूलवस्तु में संयम करत हुआ परममहत् परिणाम वाले आकाशादिकों में निर्विघ्र स्थिति को पाता है। प्रतिबन्ध से रहित चित्तस्थिति का नाम “वशीकार” है, यह वशीकार ही चित्तस्थिति का चिन्ह है, इसी वशीकार से पूर्ण हुअ योगी का चित्त फिरर किसी अन्य उपाय की अपेक्षा नहीं रखता।। भाव यह है कि दृढस्थितिपथ्र्यन्त ही उपायों की आवश्यकता है पश्चात् नहीं।। सं० - अब स्थिर हुए चित्त में होनेवाली सम्प्रज्ञातसमाधि का विषय तथा उसक स्वरूप निरूपण करते हैं:-

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