DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :वीतराग विषयम् वा चित्तम् ॥॥1/37
सूत्र संख्या :37

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - वीतारागविषयं। वा। चित्तम् । पदा० - (वा) अथवा (वीतरागविषयं) रागरहित पुरूषों क चित्त में संयम करने से (चित्तम्) योगी का चित्त स्थिर होता है।।

व्याख्या :
भाष्य - राग, द्वेष, माहादि से रहित सृष्टि की आदि में होनेवाले वेदप्रकाशक अग्रि, वायु आदि महर्षिों को “वीरतराग” कहते हैं, इन महानुभावों के चित्त में लगाया हुआ योगी का चित्त स्थिति को प्राप्त होता है।। भाव यह है कि योगी अपने चित्त की स्थिति के लिये वीराग पुरूषों के चित्त में संयम करे।।

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