DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषय व्याख्याता ॥॥1/44
सूत्र संख्या :44

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० -एतया। एव। सविचारा । निर्विचारा। च। सूक्ष्मविषया। व्याख्याता। पदा० - (एतया, एव) इस सवितर्क तथा निर्वितर्कसमाधि के लक्षण से ही (सूक्ष्मविषया) सूक्ष्मविषय में होनेवाली (सविचारा) सविचारसमाधि, तथा (निर्विचारा) निर्विचारसमाधि का भी (व्याख्याता) लक्षण जानना चाहिये।।

व्याख्या :
भाष्य - विषय सहित ज्ञान में देश, काल, विषय तथा विषय का कारण, इन चारों का भान होता है केवल ज्ञान में नहीं, इसलिय सविषयज्ञान की अपेक्षा केवलज्ञान सूक्ष्म है, इसके सम्बन्ध तदाकारता को प्राप्त हुई चित्तवृत्ति का नाम सविचार तथा निर्विचारसमाधि है अर्थात् स्थूल सूक्ष्म सर्वविषयों से निमुक्त ईश्वर के ज्ञानमात्र में स्थिर हुई योगी की चित्तवृत्ति को सविचार तथा निर्विचारसमाधि कहते हैं।। जिस समाधि में ज्ञान के आश्रय परमात्मा का भान नहीं होता किन्तु ज्ञानमात्र का ही भान होता है उसको सविचारासमाधि और जिसमें सम्पूर्ण जगत् की योनि अनन्तकल्याणगुणमय सविदानन्दस्वरूप परमात्मा का भान होता है उसको निर्विचारसमाधि कहते हैं, यहां पर जो सवितर्क, निर्वितर्क, सविचार, निर्विचार, इस प्रकार समाधियों का क्रम से वर्णन किया है उसका भाव यह है कि योगी पूर्व २ समाधि को परित्याग करके उत्तरोत्तर समाधि को अपने सम्पादन करे अर्थात् प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय को सम्पादन करके अपने आपको कृतार्थ न मानले, क्योंकि परमात्मा में समाधि होने से ही पुरूष कृतार्थ होता है, जैसा कि “यच्छेद्वाड्मनसप्रिाज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञानआत्मनि, ज्ञानमात्मनिमहतिनियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्तआत्मनि” कठ० ३ । १३ में कहा है कि बुद्धिमान् योगी इन्द्रियों को विषयों से रोककर मनमें लय करे और मन को बुद्धि में तथा बुद्धि को सर्वज्ञाता परमात्मा में लय करे।। सं० - अब सविचार, निर्विचचार समाधि के विषय की सीमा का निरूपण करते हैं:-

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