सूत्र :विशोका वा ज्योतिष्मती ॥॥1/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - विषोका । वा। ज्योतिष्मती ।
पदा० - (वा) अथवा (विशोका, ज्योतिष्मती) विशोकाज्योतिष्मती नामकः प्रवृत्ति उत्पन्न होकर चित्त को स्थिर करती है।।
व्याख्या :
भाष्य - चित्त तथा अस्मिता में संयम द्वारा उत्पन्न हुई विषोका ज्योतिष्मती प्रवृत्ति से भी योगी का चित्त स्थिर होता है, यहां रजोगुण, तपोगुण से रहित सात्त्विक अहंकार का नाम अस्मिता है।।
इस प्रवृत्ति का “विशोका” नाम इसलिये है कि उसके उद्य होने से योगी शोक रहित होजाता है और “ज्योतिष्मती” इसलिये है कि चित्त तथा अस्मितारूप ज्योति को विषय करती है।।
तात्पर्य्य यह है कि योगी विषोका ज्योतिष्मती नामक प्रवृत्ति से चित्तं की स्थिरता को सम्पादन करे।।
“ज्योतिष्मती” यह प्रवृत्ति का नाम है और विशोका उसका विशेषण है, यहां इतना विशेष जानना चाहिये कि चित्त को विषय करनेवाली प्रवृत्ति का नाम विषयवती विशोका ज्योतिष्मती और चित्त के कारण अस्मिता को विषय करनेवाली प्रवृत्ति का नाम विषोका ज्योतिष्मती है।।
सं० - अब और उपाय कहते हैं:-