सूत्र :स्वप्ननिद्रा ज्ञानालम्बनम् वा ॥॥1/38
सूत्र संख्या :38
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - स्वप्रनिद्राज्ञानालम्बनं। वा।
पदा० - (वा) अथवा (स्वप्रनिद्राज्ञानालम्बनं) स्वप्रज्ञान तथा निद्रांज्ञान के विषय में संयम वाला चित्त स्थिर होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - स्वप्रज्ञान के विषय माता, पिता, आचार्य्य आदि और सुषुप्तिज्ञान के विषय ब्रहानन्द में संयम करने से योगी का चित्त स्थिति को प्राप्त होता है।।
भाव यह है कि योगी चित्तस्थिति के लिये स्वप्रज्ञान वा निद्राज्ञान के विषय माता, पिता, आचार्य्य तथा परमात्मा के स्वरूपभूत सुख में संयम करे।।
सं०- अब चित्तस्थिति का अन्य सुगम उपाय कहते हैं:-