सूत्र :यथाभिमतध्यानाद्वा ॥॥1/39
सूत्र संख्या :39
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - यथाभिमतध्यानात् । वा।
पदा० - (वा) अथवा (यथाभिमतध्यानात्) शास्त्रोक्त चित्तस्थिति साधनों के मध्य स्वाभीष्टसाधन में संयम करने से चित्त स्थिर होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - नाभिचक, हृदयकमल, मूर्द्धज्योति:, आदि के मध्य जहां रूचि हो वहीं ही संयम करने से चित्त स्थित होता है।।
तात्पर्य्य यह है कि शास्त्रों में जिन ध्येय पदार्थों का वर्णन किया है, उनमें से किसी एक में योगी अपनी रूचि के अनुसार संयम करे, उस ध्येय में स्थित हुअस चित्त परमात्मा में भी स्थिति को प्राप्त होता है।।
सं० - अब चित्त की छढ़ स्थिति का चिन्ह निरूपण करते हैं:-