DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यासः ॥॥1/32
सूत्र संख्या :32

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - तत्प्रतिषेघार्थ। एकतत्त्वाभ्यास:। पदा० - (तत्प्रतिषेघार्थ) उन विघ्रों की निवृत्ति के लिये (एकतत्त्वाभ्यास:) एकमात्र ईश्वर का प्रणिधान करना ही आवश्यक है।।

व्याख्या :
भाष्य- यहां प्रकरण से “एकतत्त्व” पद का अर्थ ईश्वर है जिसमें “एकोदेवः” श्वे० ६ । ११ इत्यादि प्रमाण हैं, “अभ्यास” पद का अर्थ प्रणवोपासना है।। भाव यह है कि उक्त विघ्रों की निवृत्ति के लिये ईश्वर का प्रणिघान ही योगी को कत्र्तव्य है। और जो वात्र्तिककार तथा मधुसूदन सरस्वती आदि “एकतत्त्व” पद का अर्थ स्थूलतत्त्व करके उसके अभ्यास को उक्त विघ्नों की निवृत्ति का उपाय कथन करते हैं, यह ठीक नहीं, क्योंकि २९ वें सूत्र में ईश्वरप्रणिधान को ही विघ्नों की निवृत्ति का उपाय कथन करके इस सूत्र से उपसंहार किया है, यदि इस सूत्र में “एकतत्त्व” पद का अर्थ कोई स्थूल तत्त्व कियाजाय तो पूर्वसूत्र से इस सूत्र की एकवाक्यता नहीं रहती, अतएव “एकतत्त्व” पद का अर्थ ईश्वर ही होसक्ता है “स्थूल तत्त्व” नहीं ।। सं० - अब चित्तमल की निवृत्ति के लिये भावनाओं का उपदेश करते हैं, जिससे चित्त शुद्ध होकर ईश्वरप्रणिधान के योग्य होजाता है:-

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: