DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
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Darshan

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सूत्र :स एष पूर्वेषामपिगुरुः कालेनानवच्छेदात् ॥॥1/26
सूत्र संख्या :26

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - पूर्वेषाम् । अपि । गुरूः। कालेन । अनवच्देदात्। पदा० - (पूर्वेषाम्) वह ईश्वर पूर्व ऋषियों का (अपि) भी (गुरूः) गुरू है, क्योंकि (कालेन, अनवच्देदात्) उसका काल से अन्त नहीं होता ।।

व्याख्या :
भाष्य - वह ईश्वर अग्रि, वायु आदि महर्षियों का भी गुरू है अर्थात् उनको वेदोपदेष करनेवाला है, उसका किसी प्रकार भी काल से अन्त नहीं होता और अग्रिआदि ऋषियों का काल से अन्त होजाता है, इसलिये वह ईश्वर नहीं कहला सकते, क्योंकि वह उत्पन्न होते और मरते हैं, अग्रिआदि महर्षियों द्वारा जो वेद का प्रकाशक है वही ईश्वर है।। वार्तिककार विज्ञानभिक्षु ने इस सूत्र का यह अर्थ किया है कि वह ईश्वर (पूर्वेषाम्) पूर्व सर्ग में होनेवाले ब्रहृा, विष्णु महेशादिकों का भी गुरू अर्थात् पिता है और विवाद्वारा ज्ञान का दाता है, क्योंकि (कालेनानवच्छेात्) ब्रहृा आदि का काल से अन्त हो जाता है और वह अविनाशी गुरू के बिना उत्पन्न वा ज्ञानयुक्त नहीं होसकते, अतएव जिसका काल से कदापि अन्त नहीं और जा ब्रहृा, विष्णु आदिकों का भी उत्पन्न करने वाला तथा वेदविद्या के द्वारा ज्ञान का देनेवाला है वही ईश्वर है। सं० - अब ईश्वर का नाम कथन करते हैं:-

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