सूत्र :ततः प्रत्यक्चेतनाधिगमोऽप्यन्तरायाभवश्च ॥॥1/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०- ततः। प्रत्यक्चेतनाधिगम:। अपि। अन्तरायाभाव:। च।
पदा०- (तत:) ईश्वरप्रणिधान से (प्रत्यक्चेतनाविगम:) पुरूष का साक्षात्कार (च) और (अन्तरायाभाव:) उसके साधनयोग में होनेवाले विघ्रों की निवृत्ति (अपि) होती है।।
व्याख्या :
भाष्य - ईश्वरप्रणिधान अर्थात् प्रणवोपासना से योगी को केवल समाधि का लाभ ही नहीं होता किन्तु योग के प्रतिबन्धक सर्व विघ्रों की निवृत्ति होकर प्रकृति तथा प्राकृत पदार्थों से भिन्न परमात्मा के यथार्थ स्वरूप का साक्षात्कार भी होता है।।
यहां क्रम इसप्रकार जानना चाहिये कि प्रथम ईश्वरप्रणिधान होता है, उसके अनन्तकर योग के विघ्रों की निवृत्ति होकर सम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति होती है और फिर प्रकृति पुरूष का विवके उद्य होता है, तत्पश्चात् वैराग्य होता है फिर इसके अनन्तर असम्प्रज्ञात समाधि होती है, पश्चात् परमात्मा का प्रकाश और उसके प्रकाश के अनन्तर कैवल्य=मोक्ष का लाभ होता है।।
स्ं० - अब प्रसन्न संगति से योग के विघ्रों का निरूपण करते है:-
व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्ध-