सूत्र :क्लेश कर्म विपाकाशयैःपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः ॥॥1/24
सूत्र संख्या :24
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद०-क्केशकमंविपाकाशयै:। अपरामृष्ट:। पुरूषविशेष:। ईश्वर: ।।
पदा० -(क्केशकमंविपाकाशयै:) क्कश, कर्म, विपाक, आशय, इनसे (अपरामृष्ट:) रहित जो (पुरूषविशेष:) पुरूषविशेष है, उसको (ईश्वर:) ईश्वर कहते हैं।।
व्याख्या :
भाष्य-विद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवश, यह पांच क्केश हैं, और शुभ अशुभ दो प्रकार के कर्म हैं, कर्मों के फल, जाति, आयु, भोग, इनका नाम “विपाक” है इनके अनुसार चित्त में होनेवाली वासनाओं को “आशय” कहते हैं, इन सब के सम्बन्ध से रहित पुरूष विषेश का नाम “ईश्वर” है।।
सं० - अब पूर्वोक्त ईश्वर के सद्भाव में प्रमाण कथन करते हैं:-