सूत्र :ईश्वरप्रणिधानाद्वा ॥॥1/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पदा० - ईश्वरप्रणिधानात् । वा।
पदा० - (ईश्वरप्रणिधानात्) इश्ष्वर के प्राणिधान अर्थात् भक्तिविशेष से आसन्नतम समाधि का लाभ होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - प्रणिधान भक्तिविशेष को कहते हैं जिसका वर्णन सूत्रकार आगे करेंगे, जिनका अधिमात्रतीव्रसंवेग है और ईश्वर का प्राणिधान करते हैं ऐसे यह भी स्मरण रहे कि प्रणिधान शब्द से द्वितीयपाद के आदि में निरूपण किये हुए प्रणिधान का ग्रहण नहीं, क्योंकि वह सम्प्रज्ञातसमाधि का साधन है असम्प्रज्ञात का नहीं।।
सं० - अब जिस ईश्वर के प्रमिणधान से योगियों का आसन्नतम समाधि का लाभ होता है उसका निरूपण करते हैं:-