DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :तीव्रसंवेगानामासन्नः ॥॥1/21
सूत्र संख्या :21

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - तीव्रसंवेगानाम् । आसन्न:। पदा० - (तीव्रसंवेगानाम्) तीव्रवैराग्य वाले योगियों को (आसन्न:) शीघ्र समाधि तथा उसके फल कैवल्य का लाभ होता है।।

व्याख्या :
भाष्य - संवेग नाम वैराग्य का है पूर्वजन्म के संस्कार तथा अदृष्ट की विलक्षणता के कारण मृदु, मध्य, अधिमात्र भेद से श्रद्धा आदि उपाय तीन प्रकार के है, इनके तीन भेद होने से इन उपायों वाले योगियों के भी तीन भेद हैं अर्थातृ मृदूपाय, मध्योपाय और अधिमात्रोपाय, इन तीनों योगियों के भी मृदुसंवेग, मध्यसंवेग, अधिमात्रसंवेग, इस प्रकार एक २ के तीन २ भेद होने से नौ भेद हैं अर्थात् श्रद्धा आदि उपाय तथा वैराग्य के मृदु आदि भेद से (१) मृदुपायमृदुसंवेग (२) मृदुपायमध्यसंवेग (३) मृदुपायाधिमात्रसंवेग (४) मध्योपायमृदुसंवेग (५) मध्योपायमध्यसंवेग (६) मध्योपायाधिमात्रसंवेग (७) अधिमांत्रोपायमृदुसंवेग (८) अधिमात्रोपायमध्यसंवेग (९) अधिमात्रोपायाधिमात्रसंवेग, इस प्रकार योगियों के नौ भेद है, इनमें अन्तिम योगी को शीघ्र ही असम्प्रज्ञातसमाधि तथा उसके फल का लाभ होता है। सं० - अब उक्त समाधि की प्राप्ति में और विशेषता कथन करते हैं:-