DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

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सूत्र :तदा विवेकनिम्नं कैवल्यप्राग्भारं चित्तम् ॥॥3/26
सूत्र संख्या :26

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - तदा। विवेकनिम्नं। कैवल्यप्राग्भारम्। चित्तम्। पदा० - (तदा) जन्मादि भावना की निवृत्ति होने से (चित्तम्) चित्त (विवेकानिम्नं) विवेक मार्ग को प्राप्त हुआ (कैवल्यप्राग्भारम्) कैवल्य के अभिमुख होजाता है।।

व्याख्या :
भाष्य - आशय यह है कि अज्ञान के कारण जिस चित्त का विषयों की ओर प्रवाह था विवेकज्ञान के उदय होने से उसी चित्त का प्रवाह मोक्ष की ओर होजाता है।। सं० - अब योगी के चित्त की समाधि से उत्थान होकर स्नानादिकों में प्रवृत्ति कथन करते हैं:-

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