सूत्र :हानमेषां क्लेशवदुक्तम् ॥॥3/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - हानम्। एषाम्। क्केशवत्। उक्तम्।
पदा० - (एषाम्) इन व्युत्थान संस्कारों की (हानम्) निवृत्ति (उक्तं) पूर्वाचाय्यों ने (क्केशवत्) क्केशनिवृत्ति की भांति कथन की है।।
व्याख्या :
भाष्य - जैसे कियायोगके अनुष्ठान द्वारा निर्बल हुए अविद्यादि क्केश विवेकाग्नि सं दग्ध होजात हैं वैसे ही व्युत्थान संस्कार भी विवेक के उदय होने से निवृत्त होजात हैं इनकी निवृत्ति के लिये किसी अन्य उपाय की आवश्यकता नहीं।।
सं० - अब संस्कारों के नाशक प्रसंख्यान में भी इच्छा न रखने वाले पुरूष को धर्ममेघ की प्राप्ति कथन करते हैं:-