सूत्र :विशेषदर्शिनः आत्मभावभावनानिवृत्तिः ॥॥3/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - विशेषदर्शिन:। आत्मभावभावनाविनिवृत्ति:।
पदा० - (विशेषदर्शिन:) विवेकी पुरूष की (आत्मभावभावनाविनिवृत्ति:) आत्मभावभावाना निवृत्त हो जाती है।।
व्याख्या :
भाष्य - गुरू के उपदेश द्वारा पूर्वोक्त योगाड्डों के अनुष्ठान से चित्त की शुद्धि होने पर प्रकृति पुरूष के विवेकसाक्षात्कार वाले पुरूष की “मैं कौन हूं, क्या था, किस प्रकार से संसार में आया, भविष्यकाल में कहां जाउंगा अथवा मेरा स्वरूप क्या होगा” इस रीति से अपने जन्म की जिज्ञासा निवृत्त हो जाती है।।
तात्पर्य्य यह है कि आत्मा का साक्षात्कार होने से चित्त सम्बन्धित जन्मादिक चिचित्र परिणाम के निश्चय से जन्मादि भावना की निवृत्तिद्वारा पुरूष कृतकृत्य होजाता है।।
सं० - अब विवेकी पुरूष के चित्त की अवस्था का निरूपण करते हैं:-