DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :ततः कृतार्थानं परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम् ॥॥3/32
सूत्र संख्या :32

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - तत:। कृतार्थानां। परिणामकमसमाप्ति:। गुणानाम्। पदा० - (तत:) धर्ममेध समाधि के उदय होने से (कृतार्थानां, गुणानाम्) कृतप्रयोजन हुए गुणों के (परिणामकमसमाप्ति:) काय्र्योत्पादनरूप परिणाम कम की समाप्ति होती है।।

व्याख्या :
भाष्य - जब तक सत्त्वादि गुणों के परिणामकम की समाप्ति नहीं होती जब तक योगी को पुनर्जन्म की प्राप्ति निरन्तर बनी रहती है अर्थात् तीनों गुण निरन्तर देह इन्द्रियादिकों को उत्पन्न करते रहते हैं परन्तु धर्ममेघ समाधि के उदय होने से गुणों का प्रयोजन समाप्त होजाता है अर्थात् जिस योगी के तीनों गुण धर्ममेध समाधि को उत्पन्न करके कृत कृत्य हो चुके हैं उसके लिये पुनः देह इन्द्रियादि संघात को उत्पन्न नहीं कर सकते। तात्पर्य्य यह है कि धर्ममेघ समाधि की प्राप्ति से योगी का पुनर्जन्म नहीं होता।। सं० - अब गुणों के परिणामक्रम का निरूपण करते हैं:-

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