सूत्र :न तत्स्वाभासं दृश्यत्वात् ॥॥3/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पदा० - (द्दश्यत्वात्) जड़ होने कारण (तत्) वह चित्त (स्वाभासं) स्वयंप्रकाश (न) नहीं है।।
व्याख्या :
भाष्य - यहां क्षणिकविज्ञानवादी यह शंका करता है कि अग्नि की भांति स्वयंप्रकाश होने से चित्त विषय तथा अपने आपका प्रकाशक होसकता है फिर चित्त से भिन्न अपरिणामी पुरूष के मानने की क्या आवश्यकता है? इसका उत्तर यह है कि घटपटादि पदार्थों की भांति परिणामी होने से चित्त का स्वरूप जड़ है, इसलिये चित्त को स्वयंप्रकाश मानना युक्ति विरूद्ध है, और चित्त से भिन्न चेतन स्वरूप एक रस पुरूष ही स्वयंप्रकाश रूप सर्व चित्तवृत्तियों का साक्षी हैं।।
सं० - अब विज्ञानवादी के मत मे और दोष कहते हैं:-