सूत्र :ते व्यक्तसूक्ष्माः गुणात्मानः ॥॥3/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - ते। व्यक्तसूक्ष्मा:। गुणात्मान:।
पदा० - (व्यक्तसूक्ष्मा:) भूत, भविष्यत् वत्र्तमानरूप जो अनेक प्रकार के पदार्थ हैं (ते) वह सब (गुणात्मान:) तीनों गुणों का स्वरूप हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - पृथिवी आदि पांचभूत पश्चतन्मात्रस्वरूप हैं और पश्चतन्मात्र तथा एकादश इन्द्रिय अंहकारस्वरूप हैं और अहंकार महत्तत्त्स्वस्वरूप है तथा महत्तत्त्व प्रधानस्वरूप है और प्रधान गुणत्रय स्वरूप है, इस प्रकार निखिल पदार्थ गुणस्वरूप हैं।।
तात्पर्य्य यह है कि प्रकृति विकृति का भेदाभेद मानने से सम्पूर्ण महत्तत्त्वादि विकृतियों का कारण त्रिगुणात्मक प्रकृति परिणामि नित्य है अर्थात् जैसे सुवर्ण अनेक प्रकार के भूषणों के रूप में बदलता हुअस सुवर्ण भाव को परित्याग नहीं करता इसी प्रकार प्रकृति नाना प्रकार के काय्र्यो को उत्पन्न करती हुई अपने स्वरूप का परित्याग नहीं करती अर्थात् स्वरूप नित्य बनी रहती है और प्रकृति के महत्तत्त्वादि सम्पूर्ण विकार प्रकृतिरूप से नित्य हुए भी स्वरूप से अनित्य हैं और पुरूष कूटस्थ नित्य है यह सिद्धान्त है।।
सं० - तीनों गुणों के कार्यो में यह पृथ्वी है, यह जल है, इस प्रकार की एकरूपता कैसे? उत्तर:-