सूत्र :वस्तुसाम्ये चित्तभेदात्तयोर्विभक्तः पन्थाः ॥॥3/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - वस्तुसाम्ये। चित्तभेदात्। तयो:। विभक्त:। पन्थाः।
पदा० - (वस्तुसाम्ये) पदार्थ के एक होने पर भी (चित्तभेदात्) ज्ञान के अनेक होने से (तयो:) दोनों का (विभक्त:) भिन्न (पन्था:) मार्ग है।।
व्याख्या :
भाष्य - विज्ञानवादी बौद्ध का यह मत है कि एकमात्र विज्ञान ही परमार्थ से वस्तुभूत क्षणि तथा नाना है और विज्ञान से भिन्न अनुभूयमान घटपटादि सर्व पदार्थ विज्ञान का विषयभूत होने के कारण अनादि विज्ञान वासना से कल्पित मिथ्या हैं अर्थात् विज्ञान से भिन्न पदार्थों की सत्ता में कोई प्रमाण नहीं? इसका उत्तर यह है कि यदि विज्ञान से भिन्न कोई वस्तु नहीं तो एकही घटपटादि पदार्थ नाना विज्ञान का विषय नहीं होसकते और “सएवायंघट:”= यह वही घट है जिसको पूर्व देखा था, इसप्रकार की प्रत्यभिज्ञा भी नहीं हो सकती, क्योंकि जब घट कोई पदार्थ नहीं तो उसका अनुभव न होने से संस्कारों के अभावद्वारा प्रथम स्मृति का होना अस्मभव है ओर स्मृति के अस्मभव होने से प्रत्यभिज्ञा ज्ञान आकाशपुष्प् के समान है।।
तात्पर्य्य यह है कि अन्य से अनुभूत हुई वस्तु अन्य की स्मृति का विषय नहीं होती, इस नियमानुसार पूर्वकाल में घट का कल्पक विज्ञान क्षणिक होने के कारण नाश होजाने से पूर्वविज्ञान द्वारा कल्पित घट उत्तर विज्ञान का विषय नहीं होसकता, अतएव विज्ञानवादी बौद्ध के मत में प्रत्यभिज्ञ ज्ञान सर्वथा असम्भव है।।
तत्त्व यह है कि प्रत्यभिज्ञा के होने से यह पाया जाता है कि घटपटादि पदार्थ स्वरूप से विद्यमान हुए विज्ञान से भिन्न हैं विज्ञान कल्पित नहीं।।
यहां इतना स्मरण रहे कि बौद्धों के मत में विज्ञान, ज्ञान, बुद्धि, चित्त, यह सब पय्र्याय शब्द है, और विज्ञान के विषय घटपटादि को “चैत्य“ कहते हैं।।
सं० - अब क्षणिक विज्ञानवादी का एकदेशी यह प्रश्र करता है कि यद्यपि पदार्थ ज्ञान से भिन्न हैं तथापि ज्ञान के समकाल में ही उनकी सत्ता है अन्य काल में नहीं? उत्तर:-