सूत्र :परिणामैकत्वात् वस्तुतत्त्वम् ॥॥3/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - परिणामैकत्वात् । वस्तुतत्त्वम्।
पदा० - (परिणामैकत्वात्) परिणाम की एकता से (वस्तुतत्त्वम्) वस्तुओं की एकरूपता पाई जाती है।।
व्याख्या :
भाष्य - वत्ती, तैल, अग्नि, इन तीनों से मिलकर सिद्ध हुए दीपक में “एकोऽयंदीप:”=यह एक दीपक है, ऐसा व्यवहार होता है, इसी प्रकार एक संख्या के व्यवहार की भांति परस्पर अडिगडिगभाव से मिले हुए तीनों गुणों के एक परिणाम को “एकापृथिवी”=यह एक पृृथिवी है तथा “एकंजलम्”=यह एक जल है, इस प्रकार एकत्त्व की प्रतीति होती है।।
तात्पर्य्य यह है कि सम वा प्रधानभाव से परस्पर मिले हुए मृत्तिका, दुग्ध तथा तन्तु आदि अनेक वस्तुओं के एक परिणाम में विरोध होता है, परन्तु पुरूषार्थ को सम्पादन करते के लिये अडिग्डिभाव से मिले हुए अनेक सत्त्वादि गुणों का परिणाम एक होने में कोई विरोध नहीं।।
यहां इतना स्मरण रहे कि सत्त्वप्रधान गुणों का इन्द्रियरूप से और तमप्रधान गुणों का विषयरूप से एक परिणाम है।।
सं० - ननु, कोई पदार्थ भी एकरस स्थिर नहीं, सब क्षणिक है और विज्ञानस्वरूप हैं फिर प्रकृति पुरूषं का नित्यत्व कैसे? उत्तर:-