DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :न चैकचित्ततन्त्रं चेद्वस्तु तदप्रमाणकं तदा किं स्यात् ॥॥3/16
सूत्र संख्या :16

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - न। च। एकचित्ततन्त्रं। वस्तु। पदप्रमाणकं। तदा। किं। स्थात्। पदा० - (वस्तु) बाह्मपदार्थ (एकचित्ततन्त्रं) विज्ञान समय में ही है आगे पीछे नहीं (नच) यह ठी नहीं, क्योंकि (तदप्रमाणकं) जिस समय वह चित्त उस वस्तु से हट जाता है (तदा) उस समय वह वस्तु (किं) क्या (स्यात्) होगी।।

व्याख्या :
भाष्य - यदि ज्ञान के अधीन ही पदार्थ की सत्ता मानीजाय और पूर्व उत्तर क्षण में उसका अभाव माना जाय तो जिस घट को विष करने वाला चित्त घट से निवृत्त होकर अन्य किसी पदार्थ में आसुक्त होजायगा वा निरूद्ध होजायगा, उस समय उस पदार्थ का स्वरूप चित्त की विषयता का अभाव होने से उनके मत में नष्टप्राय होजायगा, क्योंकि व्यग्र और निरूद्ध चित्त का उसके साथ कोई सम्बन्ध नहीं और अन्य किसी चित्त का वह विषय ही नहीं, अतएव बाह्मपदार्थ चित्त के समान काल में ही हैं आगं पीछे नहीं सो ठीक नहीं, यह कथन अयुक्त है।। भाव यह है कि घटादि पदार्थ विज्ञान से भिन्न स्व सत्ता से विद्यमान हैं विज्ञान कल्पित अलीक नहीं।। सं० - अब बाह्मवस्तु विषयक कभी ज्ञान होना और कभी न होना, इसका कारण कथन करते हैं:-

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