DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :तासामनादित्वं चाशिषो नित्यत्वात् ॥॥3/10
सूत्र संख्या :10

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - तासाम्। अनादित्वम्। च। आशिष:। नित्यत्त्वात्। पदा० - (तासाम्) उक्त वासनाओं का (अनादित्वम्) अनादिपन (आशिष:) जीने की इच्छा के (नित्यवात्) नित्य होने से पाया जाता है।।

व्याख्या :
भाष्य - पूर्वोक्त अन्योऽन्याश्रय दोष इसलिये नहीं आता कि वासनायें प्रवाहरूप से अनादि हैं, क्योंकि जन्म से ही जो बालक को शास्त्रादिकों से भय लगता है वह भय उसने किसी पूर्व जन्म में अनुभव किया है और उस जन्म का पूर्व जन्म की वासनायें हेतु हैं, और जो यह कहा गया है कि शरीराधीन वासनायें हैं तथा वासनाधीर शरीर है, यह इसलिये ठीक नहीं कि जिन वासनाओं से यह शरीर बना है वह वासनायें इस शरीर के कर्मों से नहीं बनी किन्तु पूर्व शरीर के कर्मों से बनी हैं, और वह पूर्व शरीर अन्रू कर्मों की वासनाओं से बना था, जैसाकि बीज से अंकुर, उस अंकुर से और बीज, उस बीज से और अंकुर, इस बीजांकुरन्याय में अन्योऽन्याश्रय नहीं लगता, इस प्रकार वासनाओं को प्रवाहरूप से अनादि मानने में अन्योऽन्याश्रय दोष नहीं आता।। सं० - ननु, वासना अनादि हैं तो उनका अभाव कैसे होसकता है? उत्तर:-