सूत्र :जाति देश काल व्यवहितानामप्यान्तर्यां स्मृतिसंस्कारयोः एकरूपत्वात् ॥॥3/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - जातिदेशकालव्यवहितानाम्। अपि। आनन्तय्र्ये। स्मृतिसंस्कारयो:। एकरूपत्वात्।
पदा० - (जातिदेशकालव्यवहितानाम्) जाति=मनुष्यादिजाति, देश=जहां जन्म हुआ, काल=शतसहस्त्रवर्ष, इस प्रकार के व्यवधानों से व्यवहितानां=व्यवधानवाली वासनाओं का (अपि) भी (आननतथ्र्य) फल देने में कोई अन्तर नहीं, क्योंकि (स्मृतिसंस्कारयो:) स्मृति और संस्काररूप वासनाओं का (एकरूपत्वात्) सहचार पाये जाने से।।
व्याख्या :
भाष्य - जो पूर्वपक्षी ने यह दोष दिया था कि अनेक जन्म तथा बहुकाल के व्यवधान पड़ जाने से वह कर्म अन्य जन्म के हेतु न होंगे? इसका उत्तर इस सूत्र में यह दिया गया है कि जब स्मृति होगी तभी उन वासनाओं का आविर्भाव हो जायगा क्योंकि स्मृति और वासनाओं की समान विषयता मानी गई है अर्थात् यह दोनों एक ही चित्तरूपी अधिकरण में रहते है, इसलिये जात्यादि व्यवधानों का जन्मान्तर में कोई दोष नहीं।।
सं० - ननु शरीर प्रथम हो तो उससे कर्म उत्पन्न होकर उनकी वासनायें बनें और प्रथम वासनायें हों तो उनसे शरीर बनें, यह अन्योऽन्याश्रय दोष वासनाओं से जन्म मानने में आता है? उत्तर:-