DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :ततः तद्विपाकानुग्णानामेवाभिव्यक्तिः वासनानाम् ॥॥3/8
सूत्र संख्या :8

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - तत:। तद्विपाकानुगुणानाम्। एव। अभिव्यक्ति: । वासनानाम्। पदा० - (तत:) उक्त तीन प्रकार के कर्मों में से (तद्विपाकानुगुणानां, वासनानां) मनुष्य जन्म के फल देने के लिये अभिमुख जो वासनायें हैं उन्हीं की (अभिव्यक्ति:) प्रकटता मनुष्यजन्म के लिये होती है इतर तिर्थक् जन्म के देने वाली वासनाओं की नहीं।।

व्याख्या :
भाष्य - यद्यपि उक्त तीनों प्रकार के कर्मों में तिर्यक् योनि देनेवाले कर्म भी सम्मिलित हैं परन्तु जिस २ योनि के कर्मों का आधिक्य होता है प्रथम वही जन्म होते हैं इसलिये कर्मों के मिश्रित होने से भी कोई दोष नहीं आता।। सं० - जब एक वा कई मनुष्यजम्न होचुके तो तिर्यक् जन्म देनेवाले कर्मों में बहुत अन्तर पड़ गया फिर वह तिर्यक्जन्म के हेतु कैसे? उत्तर:-

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