सूत्र :तत्र ध्यानजमनाशयम् ॥॥3/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - तत्र। ध्यानजम। अनाशयम्।
पदा० - (तत्र) पांच प्रकार के चित्तों में से (ध्यानजं) ध्यान=समाधिरूप सिद्धि से सिद्धचित्त (अनाशयं) क्केशादि वासनाओं से रहित हुआ कैवल्य का उपयोगी होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - उक्त पांच प्रकार के चित्तों मे से वासनारहित चित्त ही समाधि का उपयोगी है।।
सं० - ननु, योगी के साथ भी पूर्व कर्मों का सम्बन्ध पाया जाता है फिर योगी का चित्त कर्मों की वासनारहित कैसे हो सकता है? उत्तर:-