सूत्र :जात्यन्तरपरिणामः प्रकृत्यापूरात् ॥॥3/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - जात्यन्तरपरिणाम:। प्रकृत्यापूरात्।
पदा० - (प्रकृत्यापूरात्) प्रकृतियों के आपूर से (जात्यन्तरपरिणाम:) पूर्वजन्म के भावों को त्यागकर अन्य प्रकार का परिणाम होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - उपादान कारण का नाम “प्रकृति” और प्रकृति के काय्र्यो में अवयवों के प्रवेश को “आपूर” कहते हैं, मन्त्र, तप, औषधादि के प्रभाव से जो शरीर और इन्द्रियों का पूर्वप्रकृति से विलक्षण परिणाम होना है उसको “जात्यन्तरपरिणाम” कहते हैं।।
भाव यह है कि चित्त और इन्द्रियों की प्रकृति जो अहंकारादिक हैं उनमें अन्य प्रकृति के अवयवों का आरम्भ कर देना जात्यन्तरपरिणाम कहलाता है अर्थात् शरीर का औषधि से और चित्त तथा इन्द्रियों का स्वाध्यायादि संस्कारों से परिवत्र्तन होजाता है।।
सं० - यदि प्रकृंत्यापूर से जात्यन्तरपरणिाम होजाता है तो पूर्व कर्म निष्फल हैं? उत्तर:-