सूत्र :तारकं सर्वविषयं सर्वथाविषयमक्रमंचेति विवेकजं ज्ञानम् ॥॥3/53
सूत्र संख्या :53
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - तारकं । सर्वविषयं । सर्वथाविषयं। अक्रमं। च। इति। विवेकजं। ज्ञानम्।
पदा० - (तारकं) तारक (अक्रमं) एकही काल में (सर्वविषयं) सर्वपदार्थ गोचर (च) तथा (सर्वथाविषयं) सर्व प्रकार से सर्व पदार्थ गोचर (इति) जो ज्ञान है, उसको (विवेकजं, ज्ञानं) विवेकजज्ञान कहते हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - जो ज्ञान बिना उपदेश के अपनी प्रतिभा से उत्पन्न होता है उसका नाम “तारक” जो समानरूप से पदार्थमात्र को विषय करता है उसका नाम “सर्वविषय” जो अवान्तर धर्मो सहित भूत, वत्र्तमान तथा अनागत पदार्थों को विषय करता है उसका नाम “सर्वथाविषय” और एक ही काल में जो सम्पूर्ण पदार्थों को सर्व प्रकार से विषय करता है उसका नाम “अकम” है, जब योगी क्षण और क्षणों के क्रम में संयम करता है तब उसको उनका साक्षात्कार होजाने से एकही काल में अतीत, अनागत तथा वत्र्तमान सम्पूर्ण पदार्थों को विषय करनेवाला बिना उपदेश के अपनी प्रतिभा से जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसका नाम विवेकज्ञान है।।
सं० - यहां पर्य्यन्त योग की विभूतियों का निरूपण किया, अब कैवल्य का उपाये कथन करते हुए पाद को समाप्त करते हैं:-