सूत्र :क्षणतत्क्रमयोः संयमात् विवेकजंज्ञानम् ॥॥3/51
सूत्र संख्या :51
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - क्षणतत्कमयो:। संयमात्। विवेकंज। ज्ञानम्।
पदा० - (क्षणतत्कमयो:) क्षण तथा क्षणों के कम में (संयमात) संयम करने से (विवेकजं) विवकेज (ज्ञानं) की प्राप्ति होती है।।
व्याख्या :
भाष्य - जितने काल में परमाणु पूर्वदेश को परित्याग कर उत्तर देश को प्राप्त होता है उतने काल का नमा “क्षण” अथवा अक्षिनिमेष के चतुर्थ भाग का नाम “क्षण” और क्षणों की अवछिन्न परम्परा का नाम “कम” है, विवेकज ज्ञान के स्वरूप का वर्णन आगे ५३ वें सूत्र में करेंगे, जब योगी क्षण और क्षणों के कम मे संयम करता है जब उसको विवेकज्ञान प्राप्त होता है।।
भाव यह है कि संसाक में जितने पदार्थ है वह सब चेतनशक्ति के बिना क्षणपरिणामी है, इसलिये जब योगी उनके परिणामक्षण में तथा क्षणों के कम में संयम करता है जब उसको क्षण तथा कम का साक्षात्कार हो जाता है, और उनके साक्षात्कार होने से पद्वत्र्ति निखिल पदार्थों का साक्षात्कार होजाता है, इसी का नाम “विवेकाज्ञान” है।।
सं० - अब विवेकजज्ञान का फल कथन करते हैं:-