DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :ग्रहणस्वरूपास्मितावयार्थवत्त्वसंयमातिन्द्रिय जयः ॥॥3/46
सूत्र संख्या :46

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - ग्रहणस्वरूपास्मितान्वयार्थवत्त्वसंयमात्। इन्द्रियजय:। पदा० - (ग्रहणस्वरू०) ग्रहण, स्वरूप, अस्मिता, अन्वय तथा अर्थवत्त्व, इन पांच रूपों में संयम करने से (इन्द्रियजय:) इन्द्रिजय की प्राप्ति होती है।।

व्याख्या :
भाष्य - विषयाकार इन्द्रियों की वृत्ति का नाम “ग्रहण” श्रोत्रत्वादि धर्मो का नाम “स्वरूप”और इन्द्रियों के कारण अहंकार का नाम “अस्मिता” तथा अस्मिता में अनुगत गुणत्रय का नाम “अन्वय”और इसमें रहनेवाली भोगापवर्गार्थता का नाम “अर्थवत्त्व” है, यह श्रोत्रादि इन्द्रियों के पांच रूप हैं, जो योगी विवेकपूर्वक इन पांचों में संयम करता है उसके सम्पूर्ण इन्द्रिय वशीभूति होजाते हैं ।। भाव यह है कि इन्द्रिये विषयप्रवणस्वभाववाली होने के कारण मनुष्य को विषयों की आरे ले जाती हैं और मनुष्य इनके वशीभूत होकर पुरूषार्थ से गिरजाता है, जब योगी उक्त पांचों रूपों में संयमद्वारा इनको अपने वश में कर लेता है जब यह विषयप्रवणस्वभाव का परित्याग करके अन्तर्मुख होजाती हैं और यथा समय योगी की इच्छानुसार वाह्मविषयों में प्रवृत्त हुई यथार्थ ज्ञान को उत्पन्न करती हैं, इस प्रकार इन्द्रियों का योगी के अधीन होकर जो विषयज्ञान का सम्पादनक करना है उसी को “इन्द्रियजय” कहते हैं।। सं० - अब इन्द्रियजय का फल कथन करते हैं:-

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: