सूत्र :रूपलावण्यबलवज्रसंहननत्वानि कायसंपत् ॥॥3/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - रूपलावण्यबलवजªसंहननत्वानि। कायसम्पत्।
पदा० - (रूपलावण्य०) रूप, लावण्य, बल तथा वज्रसंहननत्व, इन चारों का नाम (कायसम्पत्) कायसम्पत् है।।
व्याख्या :
भाष्य - दर्शनीय रूप का नाम “रूप” सर्वाड्डसौन्दर्य का नाम “लावण्य” वीर्य्य की अधिकता का नाम “बल” वज्र समान अवयवों के दृढ़ सम्बन्ध का नाम “वज्रसंहननत्व” है, यह चारो देह-ऐश्वर्य्य भूतजयी योगी को प्राप्त होते हैं।।
सं० - अब और विभूति कहते हैं:-