सूत्र :स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमात् भूतजयः ॥॥3/43
सूत्र संख्या :43
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमात्। भूतजय:।
पदा० - (स्थूलस्वरू०) स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय तथा अर्थवत्त्व, में संयम करने से (भूतजय:) भूतजय की प्राप्ति होती है।।
व्याख्या :
भाष्य - पृथिवी आदि व्यक्ति का नाम “स्थूल” कठिनता, स्नेह=गीलापन भौष्ण्य, गति तथा अनावरणतारूप धर्मों द्वारा अभिव्यक्त होनेवाले पृथिवीत्व आदि सामान्य विशेष का नाम “स्वरूप” पृथिवी आदि भूतों के कारण गन्धादि पश्चतन्मात्रों का नाम “सूक्ष्म” पृथिवीआदि में कारणरूप से अन्वित गुणत्रय का नाम “अन्वय” भोगापवर्नार्थता का नाम “अर्थवत्त्व” और भूतों को स्वाधीन कर लेने का नाम “भूतजय” है, जो योगी पृथिवी आदि भूतों के स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय तथा अर्थवत्त्व इन पांच प्रकार के रूपों में संयम करता है उसको भूतजय नामक विभूति प्राप्त होती है।।
भाव यह है कि जो योगी पृथिवी आदि भूतों के उक्त पांचों रूपों में विवेकपूर्वक संयम करता है उसके वश में उक्त पांचों भूत होजाते हैं जिससे वह इनके उपयोग से नाना प्रकार के काय्र्यो का सम्पादन कर सकता है।।
सं० - अब भूतजय का फल कथन करते हैं-