सूत्र :सत्त्वपुरुषायोः अत्यन्तासंकीर्णयोः प्रत्ययाविशेषोभोगः परार्थत्वात्स्वार्थसंयमात् पुरुषज्ञानम् ॥॥3/34
सूत्र संख्या :34
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पदा० - (अत्यन्तासक्कीर्णयो:) परस्पर अत्यन्त भिन्न (सत्त्वपुरूषयो:) बुद्धि तथा पुरूष के (प्रत्ययाविशेष:) प्रत्ययों की अभेद् प्रतीत का नाम (भोग:) भोग है और (परार्थात्) इस भोगरूप दोनों के मध्य बुद्धि प्रत्यय से भिन्न (स्वार्थसंयमात्) पौरूषेय प्रत्यय में संयम करने से (पुरूषज्ञानं) पुरूष का ज्ञान होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - बुद्धि को “ सत्त्व” और जीवात्मा को “पुरूष” कहते हैं, तिस २ विषय के आकार को प्राप्त हुई शान्त, घोर तथा मूढ़रूप बुद्धि की वृत्ति का नाम “ बुद्धिप्रत्यय” ओर बुद्धिवृत्ति के साक्षी चिन्मात्र पुरूष को आलम्बन् करने वाली बुद्धिवृत्ति का नाम “पुरूषप्रत्यय” है, बुद्धिप्रत्यय तथा पौरूषेयप्रत्यय की अभेद् रूप से प्रतीति का नाम “भोग” और बुद्धिप्रत्यय से भित्र केवल पौरूषेयप्रत्यय का नाम ”स्वार्थप्रत्यय” है, जब योगी इस स्वार्थ प्रत्यय में संयम करता है तब उसको अपने आत्मा पुरूष का साक्षात्कार होता है।।
सं० - अक उक्त स्वार्थ संयम का फल कथन करते है:-