सूत्र :ह्र्डये चित्तसंवित् ॥॥3/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - हृदये। चित्तसंवित्।।
पदा० - (हृदये) हृदय में संयम करने से (चित्तसंवित्) चित्त का ज्ञान होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - चित्त के निवासस्थान कमलाफार मांसपिण्ड का नाम “हृदय” है जो योगी हृदय में संयम करता है उसको चित्त का साक्षात्कार होता है।।
भाव यह है कि स्थान के साक्षात्कार से स्थानी का साक्षात्कार होता है यह नियम है, चित्त का निवासस्थान हृदय है, इसलिये संयमद्वारा हृदय के साक्षात्कार हो जाने से योगी के चित्त का साक्षात्कार होता है।।
सं० - अब चित्तज्ञान के अनन्तकर पुरूपज्ञान का उपाय कथन करते हैं:-
सत्त्वपुरूपयोरत्यन्तासक्कीर्णयो: प्रत्ययाविशेषो भोग: परार्थात्स्वार्थसंयमात् पुरूपज्ञानम्