सूत्र :मूर्धज्योतिषि सिद्धदर्शनम् ॥॥3/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - मूर्द्धज्योतिषि। सिद्धदर्शनम्।
पदा० - (मूद्र्धाज्योतिषि) मूर्धज्योति में संयम करेन से (सिद्धदर्शनं) सिद्धों का दर्शन होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - सिर के दोनों कपालें के मध्य ब्रहारन्ध्र नामक छिद्र है उस छिद्र के भीतर रहने वाली प्रकाशमय ज्योति का नाम “मूर्द्धज्योति ” और जिन पुरूषों को योग सिद्ध हो गया है उनका नाम “ सिद्ध” है, जब योगी संयमद्वारा मूर्द्धज्योति का साक्षात्कार कर लेता है तब उसको योगसिद्धों को दर्शन होता है।।
भाव यह है कि जिस योगी ने संयमद्वारा मूर्द्धज्योति का साक्षात्कार कर लिया है वह योगियों में प्रतिष्ठित समझा जाता है और योगी लोग उसके पास आने में संकोच नहीं करते, इसीलिये कहा है कि मूर्द्धज्योति के संयमी योगी का घर बैठे ही सिद्धों का दर्शन होता है।।
सं० - अब पूर्वोक्त सर्व विभूतियों की प्राप्ति का अनरू उपाय कथन करते हैं:-